हर समय सिमरन
एक बार संत कबीर से किसी ने पूछा, 'आप दिन भर कपड़ा बुनते रहते हैं तो भगवान का सिमरन कब करते हैं?'
कबीर उस व्यक्ति को लेकर अपनी झोपड़ी से बाहर आ गए। बोले, 'यहां खड़े रहो। तुम्हारे सवाल का जवाब सीधे न देकर, मैं उसे दिखा सकता हूं।'
कबीर ने दिखाया कि एक औरत पानी की गागर सिर पर रखकर लौट रही थी। उसके चेहरे पर प्रसन्नता और चाल में रफ्तार थी। उमंग से भरी हुई वह नाचती हुई-सी चली जा रही थी। गागर को उसने पकड़ नहीं रखा था, फिर भी वह पूरी तरह संभली हुई थी।
कबीर ने कहा, 'उस औरत को देखो। वह जरूर कोई गीत गुनगुना रही है। शायद कोई प्रियजन घर आया होगा। वह प्यासा होगा, उसके लिए वह पानी लेकर जा रही है। मैं तुमसे जानना चाहता हूं कि उसे गागर की याद होगी या नहीं।'
कबीर की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जवाब दिया,'उसे गागर की याद नहीं होती तो अब तक तो गागर नीचे ही गिर चुकी होती।
' कबीर बोले, 'यह साधारण सी औरत सिर पर गागर रखकर रास्ता पार करती है। मजे से गीत गाती है, फिर भी गागर का ख्याल उसके मन में बराबर बना हुआ है। और तुम मुझे इससे भी गया गुजरा समझते हो कि मैं कपड़ा बुनता हूं और परमात्मा का स्मरण करने के लिए मुझे अलग से वक्त की जरूरत है। मेरी आत्मा हमेशा उसी में लगी रहती है। कपड़ा बुनने के काम में शरीर लगा रहता है
आत्मा प्रभु के चरणों में लीन रहती है। आत्मा हर समय प्रभु के चिंतन में डूबी रहती है। इसलिए ये हाथ भी आनंदमय होकर कपड़ा बुनते रहते हैं।
कबीर उस व्यक्ति को लेकर अपनी झोपड़ी से बाहर आ गए। बोले, 'यहां खड़े रहो। तुम्हारे सवाल का जवाब सीधे न देकर, मैं उसे दिखा सकता हूं।'
कबीर ने दिखाया कि एक औरत पानी की गागर सिर पर रखकर लौट रही थी। उसके चेहरे पर प्रसन्नता और चाल में रफ्तार थी। उमंग से भरी हुई वह नाचती हुई-सी चली जा रही थी। गागर को उसने पकड़ नहीं रखा था, फिर भी वह पूरी तरह संभली हुई थी।
कबीर ने कहा, 'उस औरत को देखो। वह जरूर कोई गीत गुनगुना रही है। शायद कोई प्रियजन घर आया होगा। वह प्यासा होगा, उसके लिए वह पानी लेकर जा रही है। मैं तुमसे जानना चाहता हूं कि उसे गागर की याद होगी या नहीं।'
कबीर की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जवाब दिया,'उसे गागर की याद नहीं होती तो अब तक तो गागर नीचे ही गिर चुकी होती।
' कबीर बोले, 'यह साधारण सी औरत सिर पर गागर रखकर रास्ता पार करती है। मजे से गीत गाती है, फिर भी गागर का ख्याल उसके मन में बराबर बना हुआ है। और तुम मुझे इससे भी गया गुजरा समझते हो कि मैं कपड़ा बुनता हूं और परमात्मा का स्मरण करने के लिए मुझे अलग से वक्त की जरूरत है। मेरी आत्मा हमेशा उसी में लगी रहती है। कपड़ा बुनने के काम में शरीर लगा रहता है
आत्मा प्रभु के चरणों में लीन रहती है। आत्मा हर समय प्रभु के चिंतन में डूबी रहती है। इसलिए ये हाथ भी आनंदमय होकर कपड़ा बुनते रहते हैं।
~PSD~