दुष्ट कोवा हमारा मन
किसी जंगल के रस्ते में एक पीपल का विशाल पेड़ था। इस पीपल के पेड़ में अनेक पक्षियों ने अपने घोंसले बना रखे थे। उसी पेड़ पर एक हंस भी रहता था। हंस अपने उदार स्वभाव के कारण सभी पक्षियों के आदर का पत्र था। उसी पेड़ में एक कौआ भी रहता था। हंस के इस उदार भाव के कारण कौआ हंस से ईर्ष्या करता था।
एक दिन कोई यात्री उस मार्ग से जा रहा था, उस के शरीर पर मूल्यवान वस्त्र और कंधे पर धनुष-बाण शोभा दे रहे थे। वह गर्मी की तपिश से व्याकुल हो रहा था। पीपल के पेड़ की घनी छाया देख कर उसने उस पेड़ के नीचे आराम करने का निश्चय किया।
पेड़ की सुखद छाया में लेटते ही उसे नींद आ गई। थोड़ी देर बाद सूर्य की रोशनी उस पथिक के ऊपर आ गई। नींद गहरी होने के कारण वह सोता ही रहा। हंस ने जब सूर्य किरणों को उसके मुंह पर पड़ते देखा तो दयावश उसने अपने पंखों को फैला कर छाया कर दी, जिस से पथिक को सुख मिल सके।
यात्री सुख पूर्वक सोता रहा। नींद में उसका मुंह खुल गया। उसी समय कौआ भी उडाता हुआ आया और हंस के पास बैठ गया।
साधु स्वभाव वाले हंस ने कौवे को अपने समीप आया देख उसे सादर बैठाया और कुशल-प्रश्न पूछा। कौवा तो स्वभाव से ही दुष्ट था, हंस को छाया किये देख कर वह मन ही मन सोचने लगा कि यदि में इस यात्री के ऊपर बीट कर के उड़ जाऊ तो यह यात्री जाग जाएगा तथा पंख फैलाए हंस को ही बीट करने वाला समझ कर मार डालेगा, इस से में इस हंस से मुक्ति पा जाऊंगा। जब तक यह हंस यहाँ रहेगा, तब तक सब इसी की प्रशंसा करते रहेंगे।
यह विचार कर उस ईर्ष्यालु कौए ने सोए हुए पथिक के मुंह में बीट कर दी और उड़ गया। मुख में बीट गिरते ही यात्री चौंककर उठ बैठा। जब उसने ऊपर कि और देखा तो हंस को पंख फैलाए बैठा पाया। यद्यपि हंस ने उसका उपकार किया था, परन्तु दुष्ट के क्षणिक संग ने उसे ही दोषी बना दिया।
यात्री ने सोचा कि इस हंस ने ही मेरे मुंह में बीट की है, यात्री को गुस्सा तो था ही उसने धनुष-बाण उठाया और एक ही तीर से हंस का काम तमाम कर दिया। बेचारा हंस उस दुष्ट कौए के क्षणिक संग के कारण मृत्यु को प्राप्त हुआ।
इस लिए कहा गया है कि दुष्ट के साथ न तो कभी बैठना चाहिए और ना ही कभी दुष्ट का साथ देना चाहिए।
संतमत विचार:- हमारे मन दुष्ट कोवे की तरह रोज हमारी मिट्टी-पलित करता है। हमें चाहिए की इसकी चालों को समझे और उनसे बचें।
एक दिन कोई यात्री उस मार्ग से जा रहा था, उस के शरीर पर मूल्यवान वस्त्र और कंधे पर धनुष-बाण शोभा दे रहे थे। वह गर्मी की तपिश से व्याकुल हो रहा था। पीपल के पेड़ की घनी छाया देख कर उसने उस पेड़ के नीचे आराम करने का निश्चय किया।
पेड़ की सुखद छाया में लेटते ही उसे नींद आ गई। थोड़ी देर बाद सूर्य की रोशनी उस पथिक के ऊपर आ गई। नींद गहरी होने के कारण वह सोता ही रहा। हंस ने जब सूर्य किरणों को उसके मुंह पर पड़ते देखा तो दयावश उसने अपने पंखों को फैला कर छाया कर दी, जिस से पथिक को सुख मिल सके।
यात्री सुख पूर्वक सोता रहा। नींद में उसका मुंह खुल गया। उसी समय कौआ भी उडाता हुआ आया और हंस के पास बैठ गया।
साधु स्वभाव वाले हंस ने कौवे को अपने समीप आया देख उसे सादर बैठाया और कुशल-प्रश्न पूछा। कौवा तो स्वभाव से ही दुष्ट था, हंस को छाया किये देख कर वह मन ही मन सोचने लगा कि यदि में इस यात्री के ऊपर बीट कर के उड़ जाऊ तो यह यात्री जाग जाएगा तथा पंख फैलाए हंस को ही बीट करने वाला समझ कर मार डालेगा, इस से में इस हंस से मुक्ति पा जाऊंगा। जब तक यह हंस यहाँ रहेगा, तब तक सब इसी की प्रशंसा करते रहेंगे।
यह विचार कर उस ईर्ष्यालु कौए ने सोए हुए पथिक के मुंह में बीट कर दी और उड़ गया। मुख में बीट गिरते ही यात्री चौंककर उठ बैठा। जब उसने ऊपर कि और देखा तो हंस को पंख फैलाए बैठा पाया। यद्यपि हंस ने उसका उपकार किया था, परन्तु दुष्ट के क्षणिक संग ने उसे ही दोषी बना दिया।
यात्री ने सोचा कि इस हंस ने ही मेरे मुंह में बीट की है, यात्री को गुस्सा तो था ही उसने धनुष-बाण उठाया और एक ही तीर से हंस का काम तमाम कर दिया। बेचारा हंस उस दुष्ट कौए के क्षणिक संग के कारण मृत्यु को प्राप्त हुआ।
इस लिए कहा गया है कि दुष्ट के साथ न तो कभी बैठना चाहिए और ना ही कभी दुष्ट का साथ देना चाहिए।
संतमत विचार:- हमारे मन दुष्ट कोवे की तरह रोज हमारी मिट्टी-पलित करता है। हमें चाहिए की इसकी चालों को समझे और उनसे बचें।
~PSD~