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हक हलाल की कमाई

एक कमाई वाले फकीर थे । वे कही जाते तो उसी घर में ठहरते जहाँ हक हलाल की कमाई होती हो। एक बार वे एक गाँव में ठहरे तो उन्होंने लोगों से पूछा कि यहाँ कोई हक हलाल की कमाई करने वाला व्यक्ति  भी रहता है क्या ?
 लोगों ने बताया कि यहाँ एक बुढिया है , जो हक हलाल की कमाई करती है। वह बुढिया चरखा कातकर अपना निर्वाह करती थी ।
फकीर उसके घर पहुँचे और वहाँ पर दो दिन ठहरने की  ईच्छा व्यक्त की । फकीर ने देखा कि बुढिया चरखाकात कर अपना जीवन यापन कर रही है ।
साँयकाल को अँधेरा हो गया तब पड़ोस में कंजरियों का नाच हो रहा था , और गैस जल रही थी बुढिया ने उन के गैस के प्रकाश में चरखा कातना शुरु किया ,तो फकीर ने अपना झोली झंडा उठा लिया और चलने लगा । बुढिया ने पूछा कि महात्मा जी आप तो दो दिन तक ठहरने वाले थे, इतनी जल्दि क्यों चल पड़े ।
फकीर ने कहा कि मैं तो यह सुन कर आया था कि आप हक हलाल की कमाई पर निर्वाह करती हैं, पर आप ने तो कंजरियों की गैस लाईट में चरखा चलाया है, जो कि हक हलाल की कमाई नही है । फकीर इतना कह कर चल पड़ा ।

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