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सत्संगी कौन है?

मालिक ने सत्संगी उन्हें कहा जो लाेग मालिक की रजा में रहे मालिक की याद में रहें जो पल पल उस मालिक के
नाम का सिमरन करें । जिसके दिल में मालिक की जगह हों। और जो दिन रात मालिक के प्यार के लिए तडपतें है ।
लेकिन मालिक की दी इतनी प्यारी सौगात काे हमने फिर एक टैग का नाम दे दिया और एक बार फिर हमने मालिक के दूसरें प्यारे लोगो को नॉन-सत्संगी का टैग लगा दिया । आखिर क्यों ?
क्या वो जो लोग सत्संग में नहीं आते है मालिक के प्यारे नहीं है या वो लोग मालिक के घर से नहीं आये । जब वो
मालिक खुद किसी के साथ भेदभाव नहीं करता तो हमे ये हक किसने दिया कि मालिक के और लोगो को हम अलग समझे । क्यों हम खुद में और उनमें फर्क करतें है । फर्क तो सिर्फ इतना हैा कि कुछ लोग अपनी गाडी का ड्राइवर खुद को समझते है । और कुछ लोगो की गाडी का ड्राइवर वो सतगुरू खुद बना है । पहले हम खुद से पूझे की क्या वाकई हम लोग सत्संगी है फिर और को ये लफज इस्तेमाल करें ।
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