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हमेशा गुरु के सामने झुको

सत्संगियों को यह शिक्षा दी जाती है कि अन्दर गुरु के सिवाय और किसी के सामने नहीं झुकना चाहिए, गुरु के अलावा बाकी सभी रूप नाम का सुमिरन करने पर गायब हो जायेंगे, इसलिए अन्दर के मार्ग पर सिर्फ गुरु के सामने ही झुकना ठीक है, इस सिद्धांत का प्रयोग हम अपनी रोज़ कि ज़िन्दगी में मिलनेवाले लोगों के साथ या बाकी काम करने में कर सकते है, तीसरे तिल में गुरु हर अभ्यासी के साथ मौजूद है.
नामदान के वक़्त गुरु सूक्ष्म रूप में अभ्यासी के अन्दर बैठ जाता है इसलिए दुनियावी कारोबार में जब अभ्यासी किसी को रस्मी तौर पर या किसी और रूप से प्रणाम करता है तो उसके लिए सही यही है कि वह गुरु का ध्यान तीसरे तिल में रखकर गुरु के आगे ही झुके, ऐसा करने से किसी तरह की मर्यादा में रुकावट नहीं आ सकती, वह
सत्संगी तो अपने गुरु को प्रणाम करेगा और इस तरह दूसरों के असर से दूर रहेगा, जब कि दूसरे लोग यह देखेंगे कि समाज और रस्मी निगाह से उसका बर्ताव सही है, बाहरी रूप से पहले की तरह वह दुनिया का काम करता नज़र आता है, लेकिन अन्दर वह गुरु को प्रणाम करता है...
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