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नाम जप की विधि

एक गाँव में रहने वाले स्त्री-पुरुष थे। गँवार थे बिलकुल। पढ़े-लिखे नहीं थे।

वे माला से जप करते तो एक पाव भर उड़द के दाने अपने पास रख लेते । एक माला पूरी होने पर एक दाना अलग रख देते । ऐसे दाने पूरे होने पर कहते कि मैंने पाव भर भजन किया है।

स्त्री कहती कि मैंने आधा सेर भजन किया, आधा सेर माला भजन किया। उनके यही संख्या थी । तो किसी तरह भगवान का नाम जपे।

अधिक-से-अधिक सेर, दो सेर भजन करो । यह भी भजन करने का तरीका है। जब आप लग जाओगे तो तरीका समझ में आ जायगा।

जैसे सरकार इतना कानून बनाती है, फिर भी सोच करके कुछ-न-कुछ रास्ता निकाल ही लेते हो । भजन की लगन होगी तो क्या रास्ता नहीं निकलेगा।

लगन होगी तो निकाल लोगे। सरकार तो कानूनों में जकड़ने की कमी नहीं रखती, फिर भी आप उससे निकलने की कमी नहीं रखते।
कैसे-न-कैसे निकल ही जाते हैं।

तो संसारसे निकलो भाई। यह तो फँसने की रीति है।
भगवान के ध्यान में घबराहट नहीं होती, ध्यान में तो आनन्द आता है, प्रसन्नता होती है, पर जबरदस्ती मन लगाने से थोड़ी घबराहट होती है तो कोई हर्ज नहीं। भगवान से कहो‒ मन नहीं लगता। कहते ही रहो, कहते ही रहो।

एक सज्जन ने कहा था‒कहते ही रहो, व्यापारी को ग्राहक के अगाड़ी और भक्त को भगवान के अगाड़ी रोते ही रहना चाहिये कि क्या करें बिक्री नहीं होती, क्या करें भजन नही होता।

ऐसे भक्त को भगवान के अगाड़ी ‘क्या करें, महाराज ! भजन नहीं होता है, हे नाथ ! मन नहीं लगता है ।’ ऐसे रोते ही रहना चाहिये।

ग्राहक के अगाड़ी रोने से बिक्री होगी या नहीं होगी, इसका पता नहीं, पर भगवान के अगाड़ी रोने से काम जरूर होगा। यह रोना एकदम सार्थक है।

सच्ची लगन आपको बतायेगी कि हमारे भगवान् हैं और हम भगवान के हैं। यह सच्चा सम्बन्ध जोड लें। उसी की प्राप्ति करना हमारा खास ध्येय है, खास लक्ष्य है।

यह एक बन जायगा तो दूजी बातें आ जायँगी। बिना सीखे ही याद आ जायँगी, भगवान की कृपा से याद आ जायेंगी।