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सुखो का खजाना

साध संगत सुखो का खजाना है।
पर ये सुख उसी को मिलते है जो संगत में आकर आँखों से अँधा, कानो से बहरा और जुबान से गूंगा बन जाये।
यानि कि जो सन्त महात्मा की न तो निंदा करे न निंदा सुने और न ही अवगुण देखे।
साध संगत में हर प्रकार के इंसान आते है गुरु का दर सभी के लिए खुला रहता है।
सच्चा गुरसिख वही जो जोड़ने का कार्य करता है न कि तोड़ने का।