सच्ची पूजा कैसे होती है?
एक बार श्री गुरु नानकदेव जी के पास एक नवाब और काजी आये। उन्होंने आकर गुरु जी से कहा - आप कहते है ना कि ना कोई हिन्दु और ना मुसलमान, सब कुदरत के बन्दे हैं। अगर आप यही मानते है कि ईश्वर एक ही है तो आज आप हमारे साथ चल कर नमाज़ पढि़ये।
गुरुजी ने कहा - ठीक है मैं आपके साथ चलता हूँ।
नमाज़ का समय हुआ तो सभी लोग नमाज़ पढ़ने लगे। नमाज़ खत्म होने पर काज़ी और नवाब गुरुजी के पास आये और कहने लगे - हम आपसे बहुत नाराज हैं, क्योंकि हम जानते है कि आपने हमारे साथ नमाज नहीं पढ़ी।
गुरुजी उनकी बात को धीरज से सुनते रहे और फिर उन्होंने कहा - काजी साहब मैं नमाज़ किसके साथ पढ़ता। आप तो यहाँ थे ही नही! काजी गुस्से में बोला - क्या बात करते हैं, मैं यही परआपके सामने नमाज़ पढ़ रहा था।
गुरुजी ने उत्तर दिया - यहाँ तो सिर्फ आपका शरीर था पर आपका मन तो अपने घर में था फिर भला मैं आपके साथ नमाज़ कैसे पढ़ता? काजी ने कहा चलिये ठीक है मैं मानता हूँ कि मेरा ध्यान यहाँ नहीं बल्कि अपने घर में था पर नवाब साहब तो यहाँ थे, आप इनके साथ नमाज़ पढ़ लेते।
गुरुजी ने कहा - नवाब साहब भी यहाँ कहाँ थे, वो तो हिन्दुस्तान के भी बाहर जाकर काबुल में घोड़े खरीद रहे थे, मेरा मतलब है कि नमाज़ के समय उनका ध्यान काबुल के घोड़ो में था। काजी और नवाब अपनी बात पर शर्मिंदा हुए तब गुरुजी ने उनको समझाया कि केवल शरीर से पूजा या नमाज़ पढ़ने से सही रूप से आराधना नहीं होती। असली आराधना तो तब होती है जब आप पूरे मन से एकाग्र होकर ईश्वर की आराधना करें चाहे किसी के भी आगे करें पर पहले अपने मन को प्रभु के चरणों में जोड़ना चाहिये ।
गुरुजी ने कहा - ठीक है मैं आपके साथ चलता हूँ।
नमाज़ का समय हुआ तो सभी लोग नमाज़ पढ़ने लगे। नमाज़ खत्म होने पर काज़ी और नवाब गुरुजी के पास आये और कहने लगे - हम आपसे बहुत नाराज हैं, क्योंकि हम जानते है कि आपने हमारे साथ नमाज नहीं पढ़ी।
गुरुजी उनकी बात को धीरज से सुनते रहे और फिर उन्होंने कहा - काजी साहब मैं नमाज़ किसके साथ पढ़ता। आप तो यहाँ थे ही नही! काजी गुस्से में बोला - क्या बात करते हैं, मैं यही परआपके सामने नमाज़ पढ़ रहा था।
गुरुजी ने उत्तर दिया - यहाँ तो सिर्फ आपका शरीर था पर आपका मन तो अपने घर में था फिर भला मैं आपके साथ नमाज़ कैसे पढ़ता? काजी ने कहा चलिये ठीक है मैं मानता हूँ कि मेरा ध्यान यहाँ नहीं बल्कि अपने घर में था पर नवाब साहब तो यहाँ थे, आप इनके साथ नमाज़ पढ़ लेते।
गुरुजी ने कहा - नवाब साहब भी यहाँ कहाँ थे, वो तो हिन्दुस्तान के भी बाहर जाकर काबुल में घोड़े खरीद रहे थे, मेरा मतलब है कि नमाज़ के समय उनका ध्यान काबुल के घोड़ो में था। काजी और नवाब अपनी बात पर शर्मिंदा हुए तब गुरुजी ने उनको समझाया कि केवल शरीर से पूजा या नमाज़ पढ़ने से सही रूप से आराधना नहीं होती। असली आराधना तो तब होती है जब आप पूरे मन से एकाग्र होकर ईश्वर की आराधना करें चाहे किसी के भी आगे करें पर पहले अपने मन को प्रभु के चरणों में जोड़ना चाहिये ।
~PSD~