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संत की सुगंधि


जब बडे महाराज जी एस. डी.ओ. थे, तो एक बार आप पहाडी इलाके में से जा रहे थे कि एकाएक आपके दिल में खुशी छा गयी। आप समझ न सके कि वह खुशी किस बात की थी। कभी-कभी आदमी अपनी औलाद को याद करके खुश होता है, कभी अपने पद को याद करके खुश होता है। आपके दिल में खयाल आया कि अप्रैल का महीना शुरू है, शायद पेडों की खुशबू के कारण खुशी का वातावरण है। फिर खयाल आया कि आपको पहाडों में रहते अठारह साल हो गये हैं, आज ही ऐसी खुशी क्यों है? ज्यो-ज्यो आप आगे गये, खुशी बढती गई। और आगे गये तो देखा कि सडक के किनारे एक मस्त फकीर मालिक की याद में बैठा था, यह खुशी उसी के कारण थी। बडे महाराज जी उसको देखकर उसकी इज्जत के लिए घोडे से उतरकर उसके पास बैठ गये। वह देखकर बोला,  खुशबू लेनेवाली नाक भी कोई-कोई होती है।

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