राजा का अहंकार
एक राजा एक महात्मा के पास बहुत सारे हीरे -जवाहरात लेकर गया की हे महात्मा मांगो तुम क्या चाहते हो। महात्मा ने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, पर उसके फिर कहने पर उन्होंने कहा ठीक है राजा जो तेरा अपना है वो मुझे देदे। तो राजा ने कहा ये खज़ाना ले लो। तो महात्मा ने कहा ये तेरा अपना नहीं है, ये तो तेरी प्रजा का है। फिर राजा ने कहा मेरा राजपाट ले लो तो महात्मा ने जवाब दिया कि ये भी तेरा नहीं है, ये भी तेरी प्रजा का ही है।
फिर राजा परेशान हो गया तो महात्मा ने उसे समझाया की यह जो मेरा राजपाट, मेरा खजाना है ये तेरा अपना बनाया हुआ है और ये मुझको दे दे। ये सुन कर राजा महात्मा के चरणों में गिर गया और कहा कि में ये सब त्यागता हूँ।
तो महात्मा ने उसे समझाया, नही राजा ये सब कुछ त्यागना नहीं है। बस इसे उस परमात्मा का समझ कर इस्तेमाल करो कभी गलती नहीं करोगे।
हमें भी ऐसे ही उस परमात्मा द्वारा दी गई चीजों को उस परमात्मा की समझ कर ही इस्तेमाल करना चाहिए और में-मेरी करके अहंकार नहीं करना चाहिए। तभी हम परमात्मा के करीब जा सकते हैं और उसके प्यारे बन सकते हैं।
फिर राजा परेशान हो गया तो महात्मा ने उसे समझाया की यह जो मेरा राजपाट, मेरा खजाना है ये तेरा अपना बनाया हुआ है और ये मुझको दे दे। ये सुन कर राजा महात्मा के चरणों में गिर गया और कहा कि में ये सब त्यागता हूँ।
तो महात्मा ने उसे समझाया, नही राजा ये सब कुछ त्यागना नहीं है। बस इसे उस परमात्मा का समझ कर इस्तेमाल करो कभी गलती नहीं करोगे।
हमें भी ऐसे ही उस परमात्मा द्वारा दी गई चीजों को उस परमात्मा की समझ कर ही इस्तेमाल करना चाहिए और में-मेरी करके अहंकार नहीं करना चाहिए। तभी हम परमात्मा के करीब जा सकते हैं और उसके प्यारे बन सकते हैं।
~PSD~