सोच का फ़र्क
एक बार की बात है। दो मित्र थे। वे किसी जूते बनाने की कंपनी मे जॉब करते थे। कंपनी में जूते बनते थे और उन दोनों का काम था मार्केट में जूते बेचना।
एक बार कंपनी के मालिक ने उनको किसी एक ऐसे गाँव मे जूते बेचने भेजा जहाँ सभी लोग नंगे पैर रहते थे।कोई चप्पल या जूते नहीं पहनता था। पहला बंदा गाँव में जाता है और वहाँ के लोगों को देखकर बड़ा परेशान हो जाता है कि यहाँ तो कोई जूते ही नहीं पहनता। यहाँ में अपने जूते कैसे बेचुँगा ये सोचकर वो वापस आ जाता है। फिर दूसरा मित्र गाँव में जाता है और ये देखकर काफ़ी खुश होता है कि यहाँ तो कोई जूते ही नहीं पहनता
अब तो मैं अपने सारे जूते यहाँ बेच सकता हूँ यहाँ तो मेरे बहुत सारे ग्राहक हैं।
तो मित्रों, यही फ़र्क होता है सकारात्मक और नकारात्मक सोच में। दुनिया मे कुछ भी असंभव नहीं है बस सोच हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए। सकारात्मक सोच रखने वाले लोग चाँद पर भी पहुँच जाते हैं और नकारात्मक सोच वाले लोग जीवन भर कूप मंडूक बने रहते हैं।
एक बार कंपनी के मालिक ने उनको किसी एक ऐसे गाँव मे जूते बेचने भेजा जहाँ सभी लोग नंगे पैर रहते थे।कोई चप्पल या जूते नहीं पहनता था। पहला बंदा गाँव में जाता है और वहाँ के लोगों को देखकर बड़ा परेशान हो जाता है कि यहाँ तो कोई जूते ही नहीं पहनता। यहाँ में अपने जूते कैसे बेचुँगा ये सोचकर वो वापस आ जाता है। फिर दूसरा मित्र गाँव में जाता है और ये देखकर काफ़ी खुश होता है कि यहाँ तो कोई जूते ही नहीं पहनता
अब तो मैं अपने सारे जूते यहाँ बेच सकता हूँ यहाँ तो मेरे बहुत सारे ग्राहक हैं।
तो मित्रों, यही फ़र्क होता है सकारात्मक और नकारात्मक सोच में। दुनिया मे कुछ भी असंभव नहीं है बस सोच हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए। सकारात्मक सोच रखने वाले लोग चाँद पर भी पहुँच जाते हैं और नकारात्मक सोच वाले लोग जीवन भर कूप मंडूक बने रहते हैं।
~PSD~