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सही गुरु का होना भी जरुरी है

एक राजा का हाथी लँगड़ाकर चलता था। राजवैद्यों के अनेक प्रयत्नों के बाद भी हाथी की चाल सुधर न सकी। संयोग से महात्मा बुद्ध उस नगर में पधारे। राजा ने उनसे इसका उपाय पूछा। बुद्ध ने कहा - इसका महावत बदल दिया जाय।
आश्चर्य!!! हाथी ठीक हो गया। राजा द्वारा कारण पूछे जाने पर बुद्ध बोले - महावत लँगड़ा था। मार्गदर्शक ही शुद्ध न हो तो पीछे चलने वाला कैसे ठीक चलेगा।
तात्पर्य यह है कि गुरु बनाओ सोच समझ कर ठोक बजाकर  देख परख कर उसकी गहराई में जाकर।  ये भेड़चाल से गुरु बनाना व्यर्थ है। समय और शक्ति का दुरप्रयोग है

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