खुदा कहाँ रहता है?
ठंड का मौसम था। तापमान 0 डिग्री के करीब था। एक बेसहारा बूढ़ा दरगाह के सामने वाले फूटपाथ पर लेटा ठंड से बुरी तरह कांप रहा था। उसके ठीक सामने मज़ार पे चादर चढ़ाने वालों की कतार लगी हुई थी।
वह हर चादर में अपना जीवन देख रहा था। परंतु कोई उसे चादर क्यों देगा?
हरेक को चादर चढ़ाकर अपने लिए उज्वल भविष्य जो मांगना था। तभी एक मजदूर उसी फूटपाथ से गुजर
रहा था। उसकी नजर इस बूढ़े पर पड़ी। उसकी हालत देख वह समझ गया कि यदि आज की रात इसने ऐसे ही काटी तो मर भी सकता है।
एक बार उसने लाईन में खड़े लोगों कि ओर देखा परन्तु उसे उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आई...तो उसने हाथ पकड़ कर बूढ़े को उठाया और अपने साथ घर चलने को कहा। बूढ़ा भी हैरान था।
क्योंकि वह अकेला ही था जो सड़क से गुजरने के बाद भी दरगाह नहीं जा रहा था। बूढ़े ने आश्चर्य से पूछा भी कि भाई मेरे,क्या तुम्हें अल्लाह से कुछ नहीं मांगना है? वह बोला- मांगना तो है, पर वह देता है कि
नहीं इसका यकीन नहीं है?
जबकि मेहनत करने पर मजदूरी मिल ही जाती है। खैर, वह सब छोड़ो और पहले मेरे साथ घर चलो।
अब बूढ़ा तो कोई आसरा चाहता ही था। उधर वह मजदूर बड़ा ही कोमल हृदय था। उसने बूढ़े को ना सिर्फ भोजन कराया,बल्कि रात भर दोनों सिकुड़ कर एक चद्दर में सो भी गए।
सुबह तक बूढ़े की हालत काफी सम्भल चुकी थी। उसने आसमान की तरफ देख कर ऐलान करते हुए कहा:-
वाह रे खुदा। तू अपना पता तो आलीशान दरगाहों का देता है और खुद रहता रहम दिल गरीबों के दिल में है।
वह हर चादर में अपना जीवन देख रहा था। परंतु कोई उसे चादर क्यों देगा?
हरेक को चादर चढ़ाकर अपने लिए उज्वल भविष्य जो मांगना था। तभी एक मजदूर उसी फूटपाथ से गुजर
रहा था। उसकी नजर इस बूढ़े पर पड़ी। उसकी हालत देख वह समझ गया कि यदि आज की रात इसने ऐसे ही काटी तो मर भी सकता है।
एक बार उसने लाईन में खड़े लोगों कि ओर देखा परन्तु उसे उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आई...तो उसने हाथ पकड़ कर बूढ़े को उठाया और अपने साथ घर चलने को कहा। बूढ़ा भी हैरान था।
क्योंकि वह अकेला ही था जो सड़क से गुजरने के बाद भी दरगाह नहीं जा रहा था। बूढ़े ने आश्चर्य से पूछा भी कि भाई मेरे,क्या तुम्हें अल्लाह से कुछ नहीं मांगना है? वह बोला- मांगना तो है, पर वह देता है कि
नहीं इसका यकीन नहीं है?
जबकि मेहनत करने पर मजदूरी मिल ही जाती है। खैर, वह सब छोड़ो और पहले मेरे साथ घर चलो।
अब बूढ़ा तो कोई आसरा चाहता ही था। उधर वह मजदूर बड़ा ही कोमल हृदय था। उसने बूढ़े को ना सिर्फ भोजन कराया,बल्कि रात भर दोनों सिकुड़ कर एक चद्दर में सो भी गए।
सुबह तक बूढ़े की हालत काफी सम्भल चुकी थी। उसने आसमान की तरफ देख कर ऐलान करते हुए कहा:-
वाह रे खुदा। तू अपना पता तो आलीशान दरगाहों का देता है और खुद रहता रहम दिल गरीबों के दिल में है।
~PSD~